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भक्त और भगवान

भक्त और भगवान-2023

अयोध्यामें एक सन्त प्रतिदिन रामकथा सुनाते थे । साधु महाराजका नियम था, प्रतिदिवस कथा आरम्भ करनेसे पूर्व ‘आइए हनुमन्तजी बिराजिए’ कहकर हनुमानजीका आह्वान किया करते थे, तब एक घण्टा प्रवचन करते थे ।
एक श्रोता प्रतिदिन कथा सुनने आता था । उसके भक्तिभावमें एक दिवस तर्कशीलता आ गई । उसे लगा कि महाराज प्रतिदिवस ‘आइए हनुमन्त बिराजिए’ कहते हैं तो क्या हनुमानजी सचमुच आते होंगे !
अतः उसने महात्माजीसे एक दिवस पूछ ही डाला, “महाराजजी, आप रामायणकी कथा बहुत अच्छी कहते हैं । हमें बडा रस आता है; परन्तु आप जो गद्दी प्रतिदिन हनुमानजीको देते हैं, उसपर क्या हनुमानजी सचमुच बिराजते हैं ?”

साधु महाराजने कहा,

“हां, यह मेरा व्यक्तिगत विश्वास है कि रामकथा हो रही हो तो हनुमानजी अवश्य पधारते हैं ।”
श्रोताने कहा, “महाराज, ऐसे बात नहीं बनेगी । हनुमानजी यहां आते हैं, इसका कोई प्रमाण दीजिए । आप लोगोंको प्रवचन सुना रहे हैं, सो तो अच्छा है; किन्तु अपने पास हनुमानजीको उपस्थिति बताकर आप अनुचित ढंगसे लोगोंको प्रभावित कर रहे हैं । आपको यह प्रमाणित करना होगा कि हनुमानजी आपकी कथा सुनने आते हैं ।”
महाराजजीने बहुत समझाया, “भैया आस्थाको किसी प्रमाणकी कसौटीपर नहीं कसना चाहिए । यह तो भक्त और भगवानके मध्यका प्रेमरस है

। व्यक्तिगत श्रद्घाका विषय है ।

आप कहो तो मैं प्रवचन बन्द कर दूं या आप कथामें आना छोड दो ।”
किन्तु श्रोता नहीं माना । व्यथित होकर साधुने कहा, “हनुमानजी हैं या नहीं, इसका हम कल परीक्षण करेंगे । मैं कथासे पूर्व हनुमानजीको बुलाऊंगा और आप उनके आसनको छूकर अनुभव कर लेना कि हनुमानजी हैं अथवा नहीं हैं ।
श्रोता इस कसौटीके लिए सज्ज हो गया और पूछा कि हम दोनोंमेंसे जो पराजित होगा, वह क्या करेगा, इसका निर्णय भी कर लें ? यह तो आपके सत्यकी परीक्षा है । यदि मुझे इसमें सत्य अनुभव हुआ तो मैं सब कुछ त्यागकर आपसे दीक्षा लूंगा और यदि आप पराजित हो गए तो क्या करोगे ? कथावाचन छोडकर आपको मेरे कार्यालयका भृत्य (चपरासी) बनना पडेगा ।”
अगले दिन कथाके पण्डालमें भारी भीड उपस्थित हो गई । जो लोग कथा सुनने प्रतिदिवस नहीं आते थे, वे भी भक्ति, प्रेम और विश्वासकी परीक्षा देखने आए पहुंचे । पण्डाल भर गया, श्रद्घा और विश्वासका प्रश्न जो था ।
महात्माजीने सजल नेत्रोंसे मंगलाचरण किया । तत्पश्चात आह्वान किया, “आइए, हनुमानजी पधारिए ।”
ऐसा बोलते ही साधुजीकी आंखे सजल हो उठीं, मन ही मन साधु बोले, “हे प्रभु ! आज मेरा प्रश्न नहीं; अपितु रघुकुल रीतिकी परम्पराका प्रश्न है । मैं तो एक साधारणजन हूं । मेरी भक्ति और आस्थाकी लाज रखना ।”
कुछ समय पश्चात श्रोताने आसनको छूनेके लिए हाथ बढाया; परन्तु उसे स्पर्श भी न कर सका !
जो भी कारण हो, उसने तीन बार हाथ बढाया; किन्तु तीनों बार असफल रहा । महात्माजी देख रहे थे कि आसनको पकडना तो दूर, वह उसे छू भी न सका ।

तीनों बार वह स्वेदसे भीग गया ।

वह साधुके चरणोंमें गिर पडा और बोला, “महाराज, आसनको छूनेका तो मुझे पता नहीं; परन्तु मेरा हाथ गद्दीतक भी पहुंच नहीं रहा; अतः मैं अपनी पराजय स्वीकार करता हूं ।”
श्रद्घा और भक्तिके साथ की गई आराधनामें बहुत शक्ति होती है । मानो तो देव, नहीं तो पत्थर । प्रभुकी प्रतिमा तो पाषाणकी ही होती है; किन्तु भक्तके भावसे उसमें प्राण-प्रतिष्ठा होती है और प्रभु बिराजते हैं ।
साधु चरित सुभ चरित कषासू ।
निरस बिसद गुनमय फल जासू ॥

भक्त के लिए वह है जो भगवान और अकेले भगवान को समर्पित है । और भगवान अपने सभी समर्पित बच्चों का ख्याल रखते हैं। वह उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। वह उन्हें शक्ति, बुद्धि और ज्ञान प्रदान करते हैं जैसे उन्होंने हनुमान के लिए किया था। समाज की भलाई के लिए कार्य करने की शक्ति

भक्त और भगवान

भक्त और भगवान
भक्त और भगवान
सच्ची भक्ति क्या है?

सच्ची भक्ति या भक्ति भक्त के मन की वह स्थिति है जब वह भगवान की शरण से एक क्षण का वियोग भी सहन नहीं कर पाता है और जब उस आश्रय से बलपूर्वक हटा भी लिया जाता है तो वह परिस्थितियों के बल पर संघर्ष करता है और संघर्ष करता है। वापस दौड़ता है और खुद को ईश्वर से जोड़ता है, जैसे सुई चुम्बक से।

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