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What Is Utpanna Ekadashi Vrat, एकादशी व्रत के नियम एवं पौराणिक कथा

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एकादशी व्रत Ekadashi Vrat की शुरुआत उत्पन्ना एकादशी Utpanna Ejkadashi से क्यों करनी चाहिए ?

सालभर में कुल 24 एकादशी के व्रत ekadashi vrat पड़ते हैं | सभी एकादशियों के नाम और महत्व भी अलग अलग हैं | आमतौर पर जब किसी को एकादशी व्रत ekadashi vrat रखना होता है, तो वो किसी भी शुक्ल पक्ष की एकादशी से इस व्रत की शुरुआत कर देते हैं| लेकिन वास्तव में एकादशी व्रत ekadashi vrat की शुरुआत उत्पन्ना एकादशी utpanna ekadashi से करनी चाहिए| इसे ही पहली एकादशी माना जाता है|

व्रतों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्रत एकादशी ekadashi का होता है| एकादशी का नियमित व्रत रखने से मन कि चंचलता समाप्त होती है धन और आरोग्य की प्राप्ति होती है| हारमोन की समस्या भी ठीक होती है तथा मनोरोग दूर होते हैं | उत्पन्ना एकादशी utpanna ekadashi का व्रत आरोग्य, संतान प्राप्ति व मोक्ष के लिए किया जाने वाला व्रत है | ये व्रत रखने से हर प्रकार की मानसिक समस्या को दूर किया जा सकता है.|

ऐसी मान्यता है कि उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखने से मनुष्यों के पिछले जन्म के पाप भी नष्ट हो जाते हैं | आइए आपको इसका महत्व, पूजन विधि और मुहूर्त के बारे में बताते हैं | उत्पन्ना एकादशी utpanna ekadashi का व्रत मार्गशीर्ष माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है | merikundli.com

Utpanna Ekadashi उत्पन्ना एकादशी व्रत के नियम :-

उत्पन्ना एकादशी Utpanna ekadashi का व्रत दो तरह से रखा जाता है | ये व्रत निर्जला और फलाहारी या जलीय ही रखा जाता है | निर्जल व्रत को स्वस्थ्य व्यक्ति को ही रखना चाहिए| अन्य लोगों को फलाहारी या जलीय व्रत रखना चाहिए | इस व्रत में दशमी को रात में भोजन नहीं करना चाहिए | एकादशी ekadashi को सुबह श्री कृष्ण की पूजा की जाती है | इस व्रत में सिर्फ फलों का ही भोग लगाया जाता है | इस दिन केवल जल और फल का ही सेवन किया जाता है |

Utpanna Ekadashi उत्पन्ना एकादशी के विशेष प्रयोग :-

प्रातः काल पति पत्नी संयुक्त रूप से श्री कृष्ण की उपासना करें | उन्हें पीले फल, पीले फूल, तुलसी दल और पंचामृत अर्पित करें. इसके बाद संतान गोपाल मंत्र का जाप करें. मंत्र होगा

– “ॐ क्लीं देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते, देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणम गता.” पति पत्नी एक साथ फल और पंचामृत ग्रहण करें|

उत्पन्ना एकादशी की पौराणिक कथा :-

सतयुग में एक बार मुरु नामक राक्षस ने देवताओं पर विजय प्राप्त कर देवताओ के राजा इंद्र को बंधक बना लिया । तब सभी देवता गण भगवान भोलेनाथ की शरण में पहुंच गए। सदाशिव भोले नाथ ने देवताओं को श्री हरि विष्णु जी के पास जाने की सलाह दी।

उसके बाद समस्त देवता गण श्री हरि विष्णु जी के पास जाकर अपनी सारी व्यथा सुनाई। ये सब सुनने के बाद श्रीहरि विष्णु जी ने सभी राक्षसों को तो परास्त कर दिया, परंतु दैत्य राजा मुरु वहां से भाग निकला। श्रीहरि विष्णु ने दैत्य मुरु को भागता देख उसे जाने दिया | स्वयं बद्री नाथ आश्रम की गुफा में विश्राम करने लगे। उसके कुछ दिनों के बाद दैत्य मुरु भगवान विष्णु जी को मारने के उद्देश्य से वहां पहुंच गया। तब श्री हरि विष्णु जी के शरीर से एक स्त्री की उत्पत्ति हुई।

उत्पन्न हुई उस स्त्री ने मुरु दैत्य को मार डाला तथा देवताओं को भय मुक्त किया। भगवान श्रीहरि विष्णु के अंश से उत्पन्न होने के कारण श्री विष्णु जी ने प्रसन्न होकर उस कन्या को वरदान देते हुए कहा कि संसार के मोह माया के जाल में उलझे हुए समस्त जनों को, जो मुझसे विमुख हो गए हैं, उन्हें मुझ तक लाने में आप सक्षम रहेंगी | आपकी पूजा- अर्चना और भक्ति करने वाले भक्त हमेशा समस्त भौतिक एवं आध्यात्मिक सुख से परिपूर्ण होकर सदगति को प्राप्त करेंगे । Read more…

श्री हरि विष्णु से उत्पन्न होने के कारण इस व्रत का नाम उत्पन्ना utpanna ekadashi पड़ा |

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