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कर्म क्या है(what is karma?) – कर्म और भाग्य का रहस्य

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What is Karma
December 12, 2022

कर्म क्या है(what is karma?) – कर्म और भाग्य का रहस्य

Karma के साथ भाग्य कब जुड़ जाते हैं – पृथ्वी पर जन्म(Birth) लेने वाले हर मनुष्य का धर्म है, कर्म करना।

कर्म क्या है(what is karma?), एक आम इन्सान की भाषा में कहा जाये तो काम करना ही कर्म है। परंतु कर्म महज़ एक छोटा सा शब्द नहीं,बल्कि सारी कायनात का अस्तित्व धारण किये हुए है। वेदों, पुराणों, ग्रंथों में मनुष्य के भाग्य(Destiny) का लेखा-जोखा उसके कर्म में ही निहित है। आइये आध्यात्मिकता के आधार पर (On the basis of spirituality)कर्म को समझने की कोशिश करते हैं। जीवन में कर्म का क्या महत्त्व है संक्षेप में कहा जाये तो,जो मनुष्य छोटे-छोटे कार्यों को ईमानदारी से करता है, वह हर कार्य को छोटा हो या बड़ा, ईमानदारी और निष्फल रुप में करेगा।

महाभारत में कहा गया है, कि हजारों में कोई एक ही होगा जो कर्म Karma को अच्छी प्रकार से करना जानता होगा। श्री मदभगवत गीता केअनुसार, कोई भी मनुष्य,किसी भी अवस्था में क्षणमात्र भी कर्म किये बिना नहीं रह सकता। इसका मतलब है कि मनुष्य हर क्षण कोई ना कोई कर्म कर रहा होता है। कर्म मूल(Karma is Root) है तो भाग्य फल है कर्म के फलस्वरूप भाग्य फल की प्राप्ति होती है भाग्य रूपी श्रेष्ठ फल की प्राप्ति चाहिए उत्तम कर्म करना आवश्यक है इस संदर्भ मे हमारे धार्मिक ग्रंथो स्पष्ट मत व्यक्त किया है । गोस्वमी तुलसीदास जी मानस के माध्यम यथार्थ सत्य को अवगत कराया है –

” करम प्रधान विश्व रचि राखा ।

जो जस करइ सो तस फल चाखा ।।

जो जैसा कर्म करेगा उसको उन्ही कर्मो के अनुसार फल भी भोगना पडेगा यही संसार का विधान है ।

श्री लक्ष्मण जी निषादराज से कहते हैं –

” काहु न कोउ सुख दुख कर दाता ।

निज कृत करम भोग सबु भ्राता ।।

हे भाई कोई किसी को सुख दुखः का देने वाला नही है सब अपने ही किए हुए कर्मो का फल भोगते हैं ।

पुरानी कहावत है ” बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ ते खाय “

अर्थात जैसा कर्म Karma वैसा फल प्राप्त होगा ।

भाग्य का परिवर्तन केवल कर्म से ही संभव है बीज रूप कर्म है भाग्य फल है सार रूप मे कहे भाग्य रूपी खजाने को प्राप्त करना है तो कर्म रूपी ही एक मात्र चावी है अन्य कोई विकल्प नही है ।

यह सृष्टि का संविधान है | जिसको हम कहते हैं “ लॉ ऑफ़ कर्मा (Law Of Karma)” | जैसा बीज बोगे वैसा ही फल प्राप्त होगा | अगर आप आम का बीज बोगे तो मिर्च नहीं मिलेगी , आम ही मिलेंगे , चाहे जल्द मिलें या देर से , परन्तु फल तो आम का ही होगा | अगर आपने मान लिया कि कुछ भी असंभव नहीं और उस मालिक पर विश्वास करते हुए आप अपने कर्मों को करते चले गए , तो आप जो भी पाना चाहते हैं या बनना चाहते हैं वह ज़रूर बन जायेंगे | merikundli.com

आचार्य चाणक्य कर्म के बारे में क्या कहते हैं ? What Says Acrya Chankya About Karma-

चाणक्य कहते हैं “भाग्य को बदला नहीं जा सकता आपको अपने भाग्य का सामना करना ही होगा “| ध्यान से समझिये इसे | जब मेरे दोस्त ने मेहनत करनी शुरू करी तो उसे एकदम से ही परिणाम नहीं मिल गए | उसमे वक़्त लगा |

परन्तु उसने शुरुवात में जो करम करे तब उसने अपने आने वाले कल (भाग्य) के बीज को बो दिया था | उस बीज के द्वारा उपजने वाले फल को ( भाग्य को) बदला नही जा सकता था | उसे उसकी मेहनत का फल मिलना ही था |

श्री कृष्ण कर्म के बारे में कहते हैं-

महाभारत की समाप्ति के बाद धृतराष्ट्र ने श्री कृष्ण से पूछा था कि यदि आप भगवान हैं तो, मुझे यह बताएं कि मैंने ऐसे क्या कर्म किए थे जिनके कारण मुझे भगवान ने सौ पुत्र दिए और फिर मेरे सामने ही उनको मरवा दिया।

श्री कृष्ण ने उसका जवाब दिया था कि इस जन्म से 100 जन्मों के पहले आपने बचपन में पक्षियों के 100 बच्चों को खेल-खेल में मार दिया था। उस पाप का ही यह फल है।

धृतराष्ट्र ने पूछा कि इस पाप के लिए मुझे 100 जन्मों का इंतजार क्यों करना पड़ा? तब श्री कृष्ण जी ने जवाब दिया कि आपके 100 जन्मों में आपके शुभ कर्मों ने, आपको इस योग्य बनाया कि आपके सौ पुत्र हो सकें। जैसे ही सौ पुत्रों ने जन्म लिया, महाकाल ने आपके सौ जन्म के पूर्व के पाप का फल आपको दे दिया।

जब लोग कष्ट में होते है अथवा नहीं भी होते तो प्रायः यह सोचते है कि जो होगा मंजूरे खुदा होगा, सब भगवान की मर्जी, जो चाहेंगे वही होगा, सब कुछ उसके हाथ में है, उसके बिना तो एक पत्ता नहीं हिल सकता, हम तो उसके हाथ की कठपुतली है, जैसा वो करता है हम वैसा ही करते है इत्यादि।

केनोपनिषद में कर्मा के बारे में कहा गया है-

केनोपनिषद् के ३ खण्ड में कथा है जिसमें अग्नि देवता, वायु देवता के सामने भगवान ने एक तिनका रख दिया और कहा इसे जला कर दिखाओ, उड़ा कर दिखाओ। देवता असमर्थ हो गए। अतएव इसका सार भी यही निकला जाता है कि भगवान के इच्छा के बिना एक तिनका भी नहीं हिल सकता। तो इस प्रकार के अनेक प्रमाण तथा तर्क से भाग्यवाद को बढ़ावा दिया जाता है, जिसके फलस्वरूप समाज में अंधविश्वास पनपता है।

कुछ लोग इस सिद्धांत को मानकर पुरुषार्थ नहीं करते और भगवान को दोषी मानते हैं कि आपने मेरे साथ यह अन्याय क्यों किया? और साथ ही तरह-तरह की गालियाँ भी देते है।

अतएव भाग्य भरोसे रहना तो मूर्खता है ही और जो ऐसा सोचते है कि कर्म करो फल तो अपने आप मिलेगा वो भी मूर्खता है। क्योंकि कर्म तो जड़ है, अपने-आप फल नहीं बन जाता। इसलिए भगवान कर्म फल दाता है जो कर्म अनुसार फल देता है, ऐसा जानना चाहिए।

(वेद), महाभारत, रामचरितमानस के प्रमाणों से यह सिद्ध हुआ कि सबकुछ भगवान नहीं करते है क्योंकि वो तो हमारे कर्म का फल देते है। कर्म करने का अधिकार हमें दिया गया है।

जो पुरुषार्थ नहीं करते और भाग्य भरोसे बैठे रहते है वो मुख लोग अज्ञानी है। इसलिए आलस्य और भाग्यवाद को त्याग कर पुरुषार्थ करना चाहिए।

अक्सर किसी सफल व्यक्ति के लिए हम लोगों को कहते सुनते हैं कि वो बड़ा lucky है…बड़ा भाग्यशाली है. और इसका उल्टा भी होता है…किसी के fail होने पर कहा जाता है कि उसका भाग्य खराब है! पर ऐसा कहने वालों की भी कमी नहीं होती कि सफलता या असफलता इंसान के कर्म से निर्धारित होती है, यानी कर्म हमेशा भाग्य से बड़ा होता है| अगर आप भी अपने बिज़नेस को ऑनलाइन लाना चाहते है तो यहाँ क्लिक करे | 

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