चलिए जानते हैं कितनी तहर की तिथि होती हैं तथा हमको कब और कैसे शुभ कार्य करना चाहिए
तिथि पाँज तरह की होती हैं :
हिंदू पंचांग में काल गणना का प्रमुख हिस्सा होती हैं तिथियां। तिथियों के अनुसार ही व्रत-त्योहार तय किए जाते हैं। कोई भी शुभ कार्य करने से पहले शुभ तिथियां देखी जाती है। ये शुभ-अशुभ तिथियां आखिर होती क्या हैं और किस तिथि का क्या महत्व है आइये जानते हैं।
प्रत्येक हिंदू महीने में शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष के 15 दिन होते हैं। प्रतिपदा से पंद्रहवीं तिथि तक प्रत्येक पक्ष की एक संख्या होती है। प्रतिपदा से शुक्ल पक्ष में पूर्णिमा और कृष्ण पक्ष में प्रतिपदा से अमावस्या तक। इस तरह दोनों पक्षों के पास 15-15 दिन का समय होता है। अब इनमें से कुछ तिथियां शुभ मानी जाती हैं तो कुछ अशुभ। अशुभ तिथियों में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है।
( किस तिथि में करें कौन सा कार्य )
नंदा तिथि :
प्रतिपदा, षष्ठी और एकादशी नंदा तिथि कहलाती हैं। इन तिथियों में व्यापार-व्यवसाय प्रारंभ किया जा सकता है। भवन निर्माण कार्य प्रारंभ करने के लिए यही तिथियां सर्वश्रेष्ठ मानी गई हैं।
भद्रा तिथि:
द्वितीया, सप्तमी और द्वादशी भद्रा तिथि कहलाती हैं। इन तिथियों में धान, अनाज लाना, गाय-भैंस, वाहन खरीदने जैसे काम किए जाना चाहिए। इसमें खरीदी गई वस्तुओं की संख्या बढ़ती जाती है।
जया तिथि:
तृतीया, अष्टमी और त्रयोदशी जया तिथियां कहलाती हैं। इन तिथियों में सैन्य, शक्ति संग्रह, कोर्ट-कचहरी के मामले निपटाना, शस्त्र खरीदना, वाहन खरीदना जैसे काम कर सकते हैं।
रिक्ता तिथि:
चतुर्थी, नवमी और चतुर्दशी रिक्ता तिथियां कहलाती हैं। इन तिथियांें में गृहस्थों को कोई कार्य नहीं करना चाहिए। तंत्र-मंत्र सिद्धि के लिए ये तिथियां शुभ मानी गई हैं।
पूर्णा तिथि:
पंचमी, दशमी और पूर्णिमा पूर्णा तिथि कहलाती हैं। इन तिथियों में मंगनी, विवाह, भोज आदि कार्यों को किया जा सकता है।